Sunday, December 28, 2025
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देहरादून वन विभाग से रिटायर हुए चमोली जनपद के दिगपाल रावत वन दरोगा ने सुनाई अपने जीवन की संघर्ष की दिलचस्प कहानी ,उत्तराखंड में बेरोजगारी को दूर करने का लिया है लिया है अब निर्णय

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उत्तराखंड के जंगलों की सुरक्षा में वर्षों तक सेवा देने वाले चमोली जनपद के वन दरोगा दिगपाल रावत अब नई राह पर चल पड़े हैं। वन विभाग से रिटायर होने के बाद उन्होंने प्रदेश में बेरोजगारी को दूर करने का संकल्प लिया है। संघर्षों से भरे अपने सफर को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे कठिन परिस्थितियों ने उन्हें मजबूत बनाया।

उत्तराखंड में वन संरक्षण और रोजगार पर जोर: चमोली के दिगपाल रावत ने वन विभाग से सेवानिवृत्त होकर नई योजनाओं की घोषणा की

 जंगलों की सुरक्षा केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए आम जनता की भागीदारी भी जरूरी है। इस दिशा में चमोली जिले के वन अधिकारी रहे दिगपाल  रावत ने अपने सेवाकाल के बाद भी उत्तराखंड के जंगलों की रक्षा और स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए नई योजनाएँ प्रस्तुत की हैं।

वन विभाग के पूर्व अधिकारी की नई पहल 

प्राप्त जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड वन विभाग के अनुभवी अधिकारी दिगपालरावत ने हाल ही में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद वन संरक्षण और ग्रामीण विकास की दिशा में सक्रिय होने का निर्णय लिया है। देहरादून वन प्रभाग से सेवानिवृत्त हुए रावत को विभागीय अधिकारियों और चेतर सेनी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रामचंद्र रमोला द्वारा सम्मानित किया गया। रावत ने अपने कार्यकाल के दौरान जंगलों की सुरक्षा के लिए कई योजनाएँ चलाईं और अब सेवानिवृत्ति के बाद भी वे समाज के हित में काम करने की योजना बना रहे हैं।

प्रावान समिति की योजना: वन सुरक्षा में सामुदायिक भागीदारी

रावत ने जंगलों की सुरक्षा और स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए “प्रावान समिति” की स्थापना करने की योजना बनाई है। यह समिति ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तर पर वन संरक्षण और ग्रामीण विकास से जुड़ी गतिविधियों को अंजाम देगी। उनका मानना है कि वन संरक्षण को सफल बनाने के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी बेहद जरूरी है। इस समिति के माध्यम से जंगलों की निगरानी, वन्यजीव संरक्षण, और वनों में आग लगने की घटनाओं को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे।

युवाओं के लिए रोजगार और सामाजिक कल्याण की योजनाएँ

वन संरक्षण के अलावा, दिगपाल रावत ने शिक्षित बेरोजगारों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में भी कई योजनाएँ प्रस्तावित की हैं। इनमें प्रमुख रूप से:

  1. वन विभाग में संविदा नियुक्तियाँ: वन विभाग में संविदा आधारित रोजगार बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे।
  2. अनाथ बच्चों की शिक्षा और विवाह सहायता: जरूरतमंद बच्चों के लिए एक पंजीकरण प्रणाली बनाई जाएगी, जिससे उनकी शिक्षा और विवाह में सहायता मिल सके।
  3. कृषि सुधार और जैविक खेती: रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई है।
  4. डेयरी उद्योग को बढ़ावा: दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देकर ग्रामीण युवाओं को रोजगार के अवसर देने का प्रयास किया जाएगा।
  5. मत्स्य पालन और स्वरोजगार: उत्तराखंड में मत्स्य पालन को प्रोत्साहित कर स्वरोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएंगे।
  6. बिजली उत्पादन और लघु उद्योग: सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन और छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई है।

वन विभाग में सुधार की आवश्यकता

विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड में वन संरक्षण के लिए प्रशासनिक सुधारों के साथ-साथ जनभागीदारी को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। यदि रिटायर्ड अधिकारी और स्थानीय समुदाय मिलकर कार्य करें, तो राज्य में वन्यजीव संरक्षण, वनों की रक्षा, और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण बदलाव लाया जा सकता है।

उत्तराखंड के जंगलों की सुरक्षा और युवाओं के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए यह जरूरी है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन इस तरह की पहल को गंभीरता से लें। समाज के प्रत्येक व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है कि वे वन संरक्षण में अपना योगदान दें और सरकार से भी अपेक्षा की जाती है कि इन योजनाओं को समर्थन दिया जाए। यदि सही रणनीति अपनाई जाए और आम जनता को इस अभियान में सक्रिय रूप से जोड़ा जाए, तो उत्तराखंड के जंगलों को सुरक्षित और युवाओं को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।


 

 

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