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आपको बता दे
उत्तराखंड राज्य गठन के 25 वर्षों बाद भी यहां के युवाओं के मूल अधिकारों की अनदेखी आखिर क्यों ?
हिंदी माध्यम से UKPSC मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं का कहना है कि उत्तराखंड लोक सेवा आयोग द्वारा कराई जा रही इस परीक्षा में हिंदी सिलेबस बढ़ाए जाने को लेकर काफी निराशा है
मात्र 11 दिन पहले बड़े बदलाव
मुख्य परीक्षा के अंतिम दिनों में 100 अंकों के हिंदी सिलेबस परिवर्तन ने छात्रों के लिए एक असंभव चुनौती खड़ी कर दी है।
आखिरी दिनों में नए टॉपिक्स की पढ़ाई का दबाव केवल उनके रिवीजन समय को नहीं छीनता, बल्कि उनके प्रतिस्पर्धा करने के अधिकार का भी हनन करता है।
खासकर जब मात्र 0.25 अंक से अभ्यर्थी चयन प्रक्रिया से बाहर हो सकते हैं, ऐसे में इस तरह की लिपिकीय त्रुटियां छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ के बराबर हो सकता है।
छात्रों ने मुख्यमंत्री और आयोग के समक्ष अपनी समस्या रखने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें अभी तक मिलने का भी अवसर नहीं मिला।
युवाओं का कहना है कि यह विडम्बना है कि हम अपने राज्य के ही मुख्यमंत्री से नहीं मिल सकते, न्याय मांगने का अवसर भी उनसे छीना जा रहा है।
आयोग को यह समझना होगा कि इस तरह के बदलाव न केवल अन्यायपूर्ण हैं बल्कि राज्य के युवाओं की मेहनत और भविष्य के प्रति एक गंभीर उदासीनता का प्रतीक भी हैं।
ऐसे में हिंदी माध्यम से परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र- छात्राएं की मांग है कि जब सिलेबस को बढ़ाया गया है तो उन्हें पढ़ने का भी समय मिलन चाहिए
जिसके लिए वह चाहते हैं कि उन्हें ढाई से 3 महीने का समय मिलना चाहिए जिससे वह अंग्रेजी माध्यम वाले छात्रों का बराबर मुकाबला कर इस परीक्षा में पास हो सके
अब देखते हैं इस पर आयोग एवं राज्य सरकार क्या फैसला लेती है