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भीख मांगते मासूम! बचपन के सपनों को निगलती मजबूरी
क्या किसी बच्चे का भविष्य सड़कों पर भीख मांगते हुए गुजरना चाहिए? मासूम हाथों को किताबों और खिलौनों से भरने के बजाय, क्या उन्हें बेबस होकर राहगीरों के सामने हाथ फैलाना चाहिए? यह एक सच्चाई है, जो हमारे समाज के संवेदनहीन होते जाने की कहानी कहती है।
रिपोर्ट के अनुसार, आज दिनांक 3 फरवरी 2025 को भिक्षावृत्ति रेस्क्यू अभियान के दौरान पटेल नगर क्षेत्र में दो बालक और दो बालिकाओं को भीख मांगते हुए पाया गया। टीम द्वारा तुरंत कार्रवाई करते हुए इन बच्चों को थाना पटेल नगर में लाया गया, जहां उनका जी.डी. मेडिकल परीक्षण कराया गया। इसके बाद, उन्हें बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया, ताकि उनके पुनर्वास और उचित देखभाल की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
भीख से बचपन तक – सिस्टम की परीक्षा
भीख मांगने वाले बच्चे अक्सर संगठित गिरोहों के शिकार होते हैं या फिर परिवार की मजबूरी के कारण इस स्थिति में पहुंचते हैं। इस तरह के रेस्क्यू अभियान समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन क्या केवल बचाव ही काफी है? जरूरत इस बात की भी है कि इन बच्चों को शिक्षित कर उन्हें बेहतर जीवन की ओर बढ़ाया जाए।
समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी
यह घटना केवल चार बच्चों की नहीं है, बल्कि उन हजारों मासूमों का प्रतीक है, जिनका बचपन गरीबी, मजबूरी और लाचारी की भेंट चढ़ रहा है। प्रशासन और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बच्चा शिक्षा और सुरक्षा से वंचित न रहे।
अपील:
अगर आप किसी बच्चे को भीख मांगते देखें, तो आंखें मूंदकर आगे न बढ़ें। नजदीकी प्रशासनिक अधिकारियों को सूचित करें, ताकि ऐसे बच्चों को उनके अधिकार मिल सकें। समाज की असली प्रगति तब होगी जब हर बच्चा सुरक्षित, शिक्षित और आत्मनिर्भर होगा।



