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वनाग्नि पर नियंत्रण हेतु वन पंचायतों का गठन, डीएम ने दिए महत्वपूर्ण निर्देश
वनाग्नि, यानी जंगलों में लगी आग, न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है बल्कि स्थानीय निवासियों और वन्यजीवों के लिए भी खतरे का कारण बनती है। उत्तराखंड के जंगलों में वनाग्नि की घटनाएं हर साल एक गंभीर समस्या बन जाती हैं, जिससे वन संपत्ति और जीवन को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इस समस्या से निपटने के लिए जिले में वन पंचायतों की सक्रिय भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इन पंचायतों के गठन से स्थानीय समुदाय को जागरूक कर वनाग्नि पर नियंत्रण पाया जा सकता है, जैसा कि इससे पूर्व नैनीताल जिले में देखा गया था।
देहरादून जिले में जिलाधिकारी सविन बसंल की अध्यक्षता में ऋषिपर्णा सभागार, कलेक्ट्रेट में जिला वनाग्नि सुरक्षा समिति की बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में वनाग्नि की घटनाओं पर नियंत्रण पाने के लिए प्रभावी उपायों पर चर्चा की गई। जिलाधिकारी ने कहा कि वन पंचायतों का गठन बहुत जरूरी है और इसके लिए 20 फरवरी तक प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके तहत उप जिलाधिकारी गौरव चटवाल को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है।
जिलाधिकारी ने बताया कि वन पंचायतों की सक्रियता से ही वनाग्नि पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब वे नैनीताल में जिलाधिकारी थे, तब वन पंचायतों की सक्रियता के कारण वनाग्नि की घटनाओं को नियंत्रित रखा गया था। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि जनमानस का सहयोग और सेंस ऑफ रिस्पॉन्सिबिलिटी बढ़ाने के लिए जनजागरूकता कार्यक्रम चलाने के निर्देश दिए गए हैं।
इसके अतिरिक्त, प्रभागीय वनाधिकारी ने बताया कि वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए “फारेस्ट फायर उत्तराखण्ड” मोबाइल ऐप को लांच किया गया है, जिसमें लोग सीधे वनाग्नि की सूचना दे सकते हैं। बैठक में समिति के सदस्यों ने भी वनाग्नि की रोकथाम के लिए विभिन्न सुझाव दिए, जिनमें स्कूलों और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना और बाहरी व्यक्तियों का सत्यापन करना शामिल है।
बैठक में मुख्य विकास अधिकारी अभिनव शाह, प्रभागीय वनाधिकारी नीरज कुमार, अपर जिलाधिकारी प्रशासन जयभारत सिंह, और अन्य संबंधित अधिकारी भी उपस्थित थे।



